चैप्टर 1 – मुलाक़ात की वो पहली नज़र
कॉलेज का पहला दिन था। हल्की-हल्की बारिश की बूँदें खिड़की से टकरा रही थीं।
कैंपस में नए छात्रों की भीड़ लगी थी—कहीं कोई हँस रहा था, तो कहीं कोई घबराया हुआ खड़ा था।
अरुण, अपनी किताबों को सीने से लगाए, धीरे-धीरे लाइब्रेरी की ओर बढ़ा।
उसकी दुनिया बड़ी साधारण थी—कविताओं की कुछ कॉपियाँ, एक पुराना बैग, और आँखों में सपनों की चमक।
लाइब्रेरी में कदम रखते ही उसकी नज़र उस पर पड़ी।
वो लड़की सफेद सलवार-कमीज़ में बैठी थी, बाल हल्के गीले, और आँखों में गहराई ऐसी कि जैसे कोई समंदर।
वो किताब पढ़ रही थी, पर उसके होंठों पर हल्की मुस्कान खेल रही थी।
अरुण की साँसें जैसे थम गईं।
"कौन है ये…?"
उसने धीरे से सोचा, मगर नज़रों को हटाना उसके बस में न था।
लड़की ने अचानक सर उठाकर देखा।
उनकी आँखें मिलीं।
बस एक पल… लेकिन वो एक पल जैसे हमेशा के लिए थम गया।
अरुण घबरा गया, जल्दी से नज़रें झुका लीं।
लेकिन दिल की धड़कनें तेज़ हो चुकी थीं।
वो लड़की थी—रिया।
क्लास की सबसे होशियार, सबसे आत्मविश्वासी लड़की।
जिसके बारे में सब बात करते थे, लेकिन उससे मिलना आसान नहीं था।
अरुण जानता था, वो उसकी दुनिया से अलग है।
लेकिन फिर भी, उस पहली नज़र ने उसके दिल पर एक अमिट छाप छोड़ दी।
उस रात अरुण ने अपनी कॉपी में लिखा—
"शायद यही है मोहब्बत की शुरुआत… एक नज़र और हज़ार धड़कनें।"
चैप्टर 2 – दोस्ती से मोहब्बत तक
अगले कुछ दिनों तक अरुण हर क्लास, हर कॉरिडोर, हर गली में बस उसी चेहरे को ढूँढता रहा।
वो मुस्कुराती हुई रिया, जिसकी आँखों ने पहली ही मुलाक़ात में उसका दिल कैद कर लिया था।
शुरुआत में अरुण ने कभी हिम्मत नहीं की उससे बात करने की।
वो दूर से ही देख लेता—कभी दोस्तों के बीच हँसते हुए, कभी लाइब्रेरी के कोने में किताबों में खोई हुई।
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।
एक दिन क्लास में प्रोफेसर ने अचानक कहा—
“रिया और अरुण, तुम दोनों एक प्रोजेक्ट साथ में करोगे।”
अरुण के दिल की धड़कन जैसे एक पल को थम गई।
वो घबराया, लेकिन रिया ने हल्की सी मुस्कान दी और बोली—
“तो अरुण, कल से काम शुरू कर लें?”
उस एक वाक्य में उसे पूरी दुनिया की खुशी मिल गई।
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अगले कई दिनों तक दोनों लाइब्रेरी, कैंटीन और क्लासरूम में साथ-साथ बैठे।
कभी नोट्स लिखते, कभी हँसते-मज़ाक करते।
धीरे-धीरे औपचारिक बातचीत दोस्ती में बदल गई।
रिया को अरुण की मासूमियत पसंद आने लगी।
वो देखती थी कि कैसे अरुण छोटी-सी बात पर भी शरमा जाता है, कैसे वो बिना किसी दिखावे के दिल से बात करता है।
एक दिन कैंटीन में बैठकर रिया ने पूछा—
“तुम हमेशा कविताओं की बातें करते हो… क्या लिखते भी हो?”
अरुण ने झिझकते हुए अपनी डायरी उसके सामने रख दी।
रिया ने कुछ पन्ने पढ़े… और उसकी आँखें नम हो गईं।
“अरुण… तुम्हारे शब्द बहुत सच्चे हैं।”
उसके होंठों से निकला हर शब्द अरुण के दिल में तीर की तरह लगा—लेकिन वो तीर दर्द नहीं, मिठास दे रहा था।
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धीरे-धीरे, दोस्ती एक अजीब खिंचाव में बदलने लगी।
कभी अरुण रिया को देखता तो चुप हो जाता।
कभी रिया उसके मज़ाक पर इतनी हँस पड़ती कि सब देखते रह जाते।
उनके बीच अब एक अनकहा रिश्ता बन रहा था।
वो रिश्ता, जिसे शायद अभी नाम नहीं मिला था—लेकिन दोनों के दिल समझ चुके थे।
उस रात अरुण ने फिर अपनी डायरी खोली और लिखा—
"दोस्ती की ये राह… शायद मोहब्बत तक जाएगी